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Tuesday, 13 August 2013

"चाहतों का दर्द तो सीने में दफ्न है"

आँखों को आँसुओं का खजाना बना लिया 

खामोशियों को दिल का ठिकाना बना लिया 


चाहतों का दर्द तो सीने में दफ्न है

पीने का हमने खूब बहाना बना लिया


अपनी तो हो गयी है हर शाम उसके नाम

यादे वफा की हमने फसाना बना लिया 


नजरें मिली तो हमको नजारे न मिल सके

उसकी नजर ने हमको निशाना बना लिया


वो जानते नहीं कि राख में भी आग है

घायलने प्यार को ही तराना बना लिया

Friday, 26 July 2013

"प्यार का हो व्याकरण" (दिलीप कुमार तिवारी "घायल")

 अमल नवल है सुमन
रूप का प्रबल चमन
हो जहाँ सबल सृजन  
अमन का हो आवरण

क्यों न फिर पड़े वहाँ
देवताओं के चरण
वाद हो विवाद हो
दुःख का विषाद हो
किन्तु बात-बात में
प्यार का हो व्याकरण
शान्ति का वातावरण

प्रीत की हो भावना  
गीत की हो साधना  
देख कर पड़ाव को
दिल कभी न हारना
जाति-पाति. रंग-रूप
भेद-भाव हो हवन

खेत हो हरा-भरा
सजी हुई रहे धरा
वीरता का मान हो
चारों ओर ज्ञान हो
वसुन्धरा को सब करें
नित्य-नित्य ही नमन

मस्त यहाँ शाम हों
खास यहाँ आम हों
विश्व में सभी जगह
मनुष्यता का नाम हो
स्वतन्त्रता बनी रहे
कम न हो कभी लगन

शान हो किसान की
आन गो जवान की
घायल की है विनय
जोत जले ज्ञान की
जर्रे-जर्रे में रहे
अपने देश में अमन

Wednesday, 17 July 2013

"ग़ज़ल-दिल तेरा दिवाना है" (दिलीप कुमार तिवारी 'घायल')

मेरे खामोश लब पे, ऐ सनम तेरा तराना है
निगाहें खुद बयां करती कि दिल तेरा दिवाना है

अगर फिर भी यकीं न हो, तो उसकी धड़कनें सुन लो
तेरे दिल के समुन्दर में ही, मेरा अशियाना है

तेरे पहलू मे आके खुद का भी अपना मकां होगा
इन्ही खुदगर्ज राहों में, गिले-शिकवे मिटाना है

मिटा सकता हूँ खुद को, ऐ सनम आगोश में तेरे
नहीं है दिल्लगी, मदहोश ये तेरा सताना है

तेरे अल्फाज में हैं, जादुई रंगों के अफसाने
मोहब्बत मेँ न तू कर शक, यही तुझको बताना है

मिरी नस-नस में बहते हैं, तिरे जज्बात के दरिया
इन्ही में डूब कर, लहरों के मुझको पार जाना है

तुम्हारी हर अदा 'घायल' सा, कर देती है घायल को
मुहब्बत का चलन तो, रूठना है और मनाना
है

▼ दिलीप कुमार तिवारी 'घायल' ▼

Tuesday, 16 July 2013

"मुक्तक और अशआर" दिलीप कुमार तिवारी 'घायल'

घायल का घरौंदा
दुनिया के रंजो गम मेँ पलना ही गजल है 
बेजान जिन्दगी में सपना ही गजल है 
तकदीर की तस्वीर को अक्सर बनाये जो
इन झील सी आँखो मेँ बसना ही गजल है
क्या खवाब बेहिसाब बताये कोई घायल
दुःख दर्द के जलन मे जलना ही गजल है
--
मुझे अक्सर सताते है तुम्हारी याद के मौसम, 
जुदाई मे रुलाते हैं तुम्हारी याद के मौसम,
कभी चाहा कि गर निकलूँ ख्यालो के समुन्दर से, 
वहीं फिर खीच लाते है तुम्हारी याद के मौसम।
--
उम्मीद वक्त का सबसे बडा सहारा है!
अगर हौसला हो तो समन्दर मे भी किनारा है।
दिलीप कुमार तिवारी 'घायल'

Monday, 15 July 2013

"गुरुवर डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का आभार दर्शन" (दिलीप कुमार तिवारी 'घायल')


मित्रों!
    आप सबको बड़े हर्ष के साथ सूचित कर रहा हूँ कि मैंने गुरुवर डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी से अपना ब्लॉग "घरौंदा घायल का" बनवा लिया है।
    मैं आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आप सब के स्नेह और आशीर्वाद का आकांक्षी