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Tuesday 16 July 2013

"मुक्तक और अशआर" दिलीप कुमार तिवारी 'घायल'

घायल का घरौंदा
दुनिया के रंजो गम मेँ पलना ही गजल है 
बेजान जिन्दगी में सपना ही गजल है 
तकदीर की तस्वीर को अक्सर बनाये जो
इन झील सी आँखो मेँ बसना ही गजल है
क्या खवाब बेहिसाब बताये कोई घायल
दुःख दर्द के जलन मे जलना ही गजल है
--
मुझे अक्सर सताते है तुम्हारी याद के मौसम, 
जुदाई मे रुलाते हैं तुम्हारी याद के मौसम,
कभी चाहा कि गर निकलूँ ख्यालो के समुन्दर से, 
वहीं फिर खीच लाते है तुम्हारी याद के मौसम।
--
उम्मीद वक्त का सबसे बडा सहारा है!
अगर हौसला हो तो समन्दर मे भी किनारा है।
दिलीप कुमार तिवारी 'घायल'

5 comments:

  1. मुक्तक और अशआर बहुत सार्थक हैं।
    --
    लिखते रहिए, लेखनी में चमक आती जायेगी।

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  2. उम्मीद वक्त का सबसे बडा सहारा है!
    अगर हौसला हो तो समन्दर मे भी किनारा है।
    ..बहुत खूब!
    हौसला हो तो पंखों की भी जरुरत नहीं होती..

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  3. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
    सादर...!

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  4. उम्मीद वक्त का सबसे बडा सहारा है!
    अगर हौसला हो तो समन्दर मे भी किनारा है।...
    बहुत खूब ... इस होंसले को बरकरार रखना जरूरी है .. बहुत लाजवाब गज़ल और ये शेर ...

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  5. बहुत सुंदर, शुभकामनाये
    यहाँ भी पधारे
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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